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जवाब दीजिए

Satya: The voice of Truth
Satya: The voice of Truth
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चलती सड़क, देश का सबसे सुरक्षित व्यस्त शहर, आस पास मौजूद पढ़े लिखे जिम्मेदार नौजवानों की फौज और फिर भी नोच फेंके गए उसके शर्म, लज्जा और लिहाज के गहने। वही गहने जो उसकी माँ ने पैदा होते ही तन पर पहले कपडे के साथ उसे पहना दिए और आज उसके कपड़ों और गहनों के साथ-साथ उतर गया उसकी आँखों पर पड़ा वो चश्मा जिससे वो देखती थी हर पुरुष को अपने रक्षक के रूप में। वो चीख रही थी कि ‘मेरी इज्जत खराब मत करो, तुम्हारे घर में भी बहन है………’

एक महिला की लड़ाई हम सब लड़ जरूर रहे हैं, लेकिन हमारी लड़ाई कुछ भी हासिल कर पाने में अब तक असफल रही है या फिर इसका हासिल लम्बे वक्त में मिलेगा। आज सब सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवी संगठन, मानवाधिकार, महिला आयोग, देशवासियों से एक पीडित लाचार एक महिला अपने ऊपर हुए अत्याचारों का जवाब मांग रही है और जानना चाहती है कि उसके साथ ऐसा अत्याचार क्यों, आप सब देशवासियों से जानना है कि जब उसके कपड़े उतारे जा रहे थे, उस वक्त उसे ऐसा जरूर लग रहा होगा की कोई आये और बचा ले उसे, पर ऐसा नहीं हुआ। महाभारत में द्रौपदी ने अपने चीर हरण के वक्त कृष्णजी को पुकार कर अपनी लज्जा को बचा ली थी, वो किसे पुकारती। आज वो ये नहीं कह रही कि उसकी लज्जा को बचा लो, अब उसके पास बचा ही क्या है? हां, वो हम सबसे जानना चाहती है कि उसे ऐसी प्रताड़ना क्यों दी गयी? संसार की सृष्टि किसने की? बलशाली, बुद्धिमान योद्धाओं को जन्म किसने दिया है? यदि औरत जाति न होती तो क्या देश की आजादी संभव थी? वो भी तो एक औरत ही है, फिर उसके साथ ऐसा क्यों किया गया? जवाब दीजिए……

चिंता मत कीजिये मैं आपको नहीं याद दिलाऊंगा वो सारी ऐसी घटनाएं जो इस वाकये से पहले भी न जाने कितनी बार दोहराई जा चुकी हैं, क्यूंकि जब आप वो सब भूल ही चुके हैं तो ये घटना भी आपके मस्तिष्क में ज्यादा दिन के लिए नहीं टिकने वाली। बदलते समाचार चैनलों की रफ्तार टिकी हुई थी के कौन सा चैनल दिखा रहा था वो विडियो। अजी गलत मत समझिएगा दरअसल हम तो जानने की कोशिश कर रहे हैं के असल में हुआ क्या था, क्यूंकि बिना सब कुछ जाने हम कैसे कह दें के उन्होंने कुछ गलत किया। हो सकता है गलती उस लड़की की रही हो।

वैसे आपने ऐसे पूरे हादसों की विडियो फुटेज न जाने कितनी मर्तबा देखी होगी, क्या एक पल को भी आपको ये ख्याल आया, के क्या होता अगर उस लड़की की जगह आपकी अपनी बहन, बेटी, पत्नी या घर की कोई भी स्त्री होती? क्या तब भी आप सिर्फ उस विडियो फुटेज को बार बार रिफ्रेश करके देखते? अरे कोई बात नहीं, मैं जानता हूँ के आपके पास मेरे इस सवाल का जवाब है ही नहीं, क्यूंकि दुर्भाग्यवश अगर वो आपके घर की कोई महिला होती तो इस समय आप इस लेख को पढने की हालत में ही न होते, और अब जब आप पढ़ ही रहे हैं तो दिमाग के किसी कोने में यही रट रहे होंगे कि क्या जरूरत थी उस लड़की को अकेले बाहर जाने की, उसको तो उसके कर्मों की सजा मिल ही गई, हमारे घर कि औरतें तो कभी ऐसा न करें और अगर करें तो मुजफ्फरनगर के उस गाँव की तरह हमारे घर पर भी बैठेगी एक खाप, और बन जायेंगे उनके आचरण के लिए नियम और कानून।

एक तरफ तो युवावों का एक हुजूम संवेदना, दुःख और विरोध प्रकट करने कही पर लाठिया और पानी की बौक्षारे खा रहा हैं और ये युवा किसी संगठन से नहीं, किसी धर्म विशेष से नहीं, किसी सवर्ण या दलित जात से नहीं, न ही किसी राजनितिक प्रेरणा से, वरन ये सिर्फ युवा हैं जो अपना आक्रोश प्रकट रहे है, वहां कोई किसी से नहीं पूछ रहा तुम किस जात से हो, किस धर्म से हो, जिसको दबाने के लिए सरकार की तमाम धाराएं भी नाकाफी है, ये वही युवा है जिनको हम ‘माल्स’ ‘मल्टीप्लेक्स’ में आनंद मानाने वाला या पार्को में आमोद प्रमोद करने वाला ‘कूल ड्यूडस’ कहते हैं। आज इन युवावो ने ये बता दिया है की ‘कूल ड्यूडस’ आनंद मानाने के लिए ही नहीं बना, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी लेना भी जानता है। यदि ये सडको पे आ जाए तो सरकार के ‘धारा’ को ‘पसेरी’ बना सरकार, के मुह पर मार सकता है। लेकिन जब सरकार बेशर्म हो जाए तो उस पर कुछ भी असर नहीं होता, हालत देखने के बाद तो यही लगा की इंडियागेट ‘लीबिया’ है और सरकार ‘गद्दाफी’ इस स्थिति में आक्रोश प्रकट करने तक तो ठीक है लेकिन लाठी या बौछार खाना नहीं क्योकि इनके दिल का दर्द मर चूका है वो आपका दर्द क्या जानेगा? कुछ दिन बाद सब चुप हो जायेंगे… बाद में फिर वही सिनेमा, वही माल्स.

अगर आप ये सोच रहे हैं के मैं किस पक्ष की ओर से लिख रहा हूँ तो कृपया इस लेख को यहीं पढ़ना बंद कर दें क्यूंकि अगर आप अभी तक समझ नहीं पाए तो कहीं न कहीं मुझे आपसे भी घृणा होगी। पुरुषों का एक आचरण घोर आपत्तिजनक है, मौका मिला नहीं के किसी भी महिला की शारीरिक संरचना को भंग करने से नहीं चूकते, चाहे बात उन हाथों की हो जो बस मौका तलाशते हैं उस घृणा की भावना को प्रगाड़ करने की या वो नजरें जो मानो एक निगाह में ही आपका मानसिक बालात्कार कर दे। कहने को घर के मुखिया एक महिला के बगैर अपने जीवन और परिवार की कल्पना तक न कर सकने वाले वो सब पुरुष भूल जाते हैं की चाहे वो पुरुष हो या महिला सबके जीवन का पहला पायदान एक ही था, बस एक गुणसूत्र की फेरबदल ने आपका लिंग निर्धारित कर दिया और हो गए आप ‘महाराजा’।

अभद्र भाषा और अश्लील आचरण पर अपना एक छत्र राज समझने वाले ये न भूलें के उन्हें उनके पैरों से घुटनों पर लाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, एक बात की जगह एक लात ही काफी होगी। लद गए शब्दों, उपदेशों, वाद-विवाद और जिरह के दिन। बस एक बात दिमाग में बिठा लीजिये के ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते’।

ऋतेष चैधरी

अतिथि प्रवक्ता, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ

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